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लिपुलेख पर भारत-चीन समझौता नेपाल की सार्वभौमिक अखंडता का अतिक्रमण है: महासचिव चंद

नेपाल-भारत सीमा संवाददाता जीत बहादुर चौधरी की रिपोर्ट

काठमाण्डौ,नेपाल – नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव नेत्र विक्रम चंद ने नेपाल में लिपुलेक भंजयांग के माध्यम से भारत और चीन के बीच तीर्थयात्रा और व्यापार सीमा को फिर से खोलने के समझौते पर आपत्ति जताई है।  

भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार डोभाल चंद ने शनिवार को एक बयान जारी कर पिछले हफ्ते अपनी चीन यात्रा के दौरान बीजिंग में हुए समझौते पर आपत्ति जताई. ।

हमारी पार्टी ने लिपुलेख भंजयांग के माध्यम से तीर्थयात्रा और वाणिज्यिक मार्ग को फिर से संचालित करने के लिए 2015 में  (18 दिसंबर) को बीजिंग में चीनी और भारतीय अधिकारियों के बीच हुए समझौते पर गंभीरता से ध्यान आकर्षित किया है, जो कि कोविड-19 के कारण बंद था।’

चंद की ओर से जारी बयान में कहा गया, ‘2015 में जब समझौता हुआ था तब भी हमारी पार्टी के साथ देशभक्त नेपाली लोगों ने समझौते को रद्द करने की मांग को लेकर संघर्ष शुरू कर दिया था.’।

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उस समय, चंद ने यह भी याद दिलाया कि चीनी सरकार ने कहा था कि यदि नेपाल के दावे के अनुसार प्रामाणिक दस्तावेज़ हों तो भारत के साथ किए गए समझौते का पुनर्मूल्यांकन किया जा सकता है।

चंद ने कहा, ”जुलाई 2020 में, नेपाल की प्रतिनिधि सभा (संसद) ने कालापानी, लिम्पियाधुरा और लिपुलेख भंज्यांग सहित क्षेत्र को कवर करने वाला एक नक्शा प्रकाशित किया है।”

नेपाल के क्षेत्र ने नेपाल की सार्वभौमिक अखंडता का अतिक्रमण किया है।”

चंद ने कहा कि नेपाल की स्वतंत्रता और अखंडता को लेकर गंभीर होना जरूरी है ।

चंद ने सरकार से मांग की है, ‘हमारी पार्टी नेपाल सरकार से मांग करती है कि लिपुलेख भंज्यांग को लेकर 18 दिसंबर  को हुए भारत-चीन समझौते को रद्द किया जाए और राष्ट्रीय अखंडता की रक्षा के लिए जरूरी कदम उठाए जाएं’।

क्राइम मुखबिर न्यूज
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