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सर सैयद के चमन से निकले छात्रों ने दुनियाभर में जलाए तालीम के चिराग : खैरूल बशर

उप संपादक अवधेश पाण्डेय की रिपोर्ट

एएमयू के पूर्व छात्र एवं इमामचौक मुतवल्ली एक्शन कमेटी के संरक्षक खैरूल को किया गया सम्मानित

गोरखपुर। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के विधार्थी रहे वरिष्ठ काउंसलर एवं इमामचौक मुतवल्ली एक्शन कमेटी के संरक्षक खैरूल बशर का इमामचौक मुतवल्ली एक्शन कमेटी के पदाधिकारियों ने सर सैयद डे अवार्ड से सम्मानित कर प्रोत्साहित किया गया।
इस अवसर पर लोगों को खिताब करते हुए खैरूल बशर ने कहा कि एएमयू के संस्‍थापक सर सैयद अहमद खान का जन्‍म दिल्‍ली के दरियागंज में हुआ था। वे चाहते थे कि मुसलमानों के एक हाथ में कुरआन और दूसरे में विज्ञान हो। उन्होंने कहा कि उस दौर की बात है जब मुसलमान शिक्षा में अतिपिछड़े हुए थे। बेटियों को स्कूल भेजना सम्मान के खिलाफ माना जाता था। सर सैयद अहमद खान ने इस सोच को बदलने का बीडा उठाया। बशर ने कहा कि सर सैयद अहमद खान के चमन से निकले छात्रों ने दुनिया भर में तालीम का चिराग जला रखा है। सर सैयद ने आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की तरह भारत में ही ऐसी यूनिवर्सिटी का सपना देखा। बशर ने कहा कि 1875 को उन्होंने सात छात्रों से मदरसा-तुल-उलूम के रूप में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) की नींव रखी थी। जो आज देश-दुनिया में पहचान बनाए हुए है। सर सैयद के इस सपने को एएमयू में पढ़े छात्र भी साकार कर रहे हैं। देश-विदेश में शिक्षण संस्थान खोलकर शिक्षा का दीप जला रहे हैं।
इस मौके पर सर सैयद अहमद खान का स्मरण करते हुए वरिष्ठ पत्रकार मुर्तजा हुसैन रहमानी ने कहा कि दुनिया भर में शिक्षा के प्रति लोगों को जागरूक करने वाले सर सैयद अहमद खान ने शिक्षा की क्रांति का संचार किया। उन्होंने कहा कि देश में शिक्षा और स्वास्थ्य को हर व्यक्ति अपना कर भारत का गौरव बढ़ा रहा है।
इस अवसर पर इमामचौक मुतवल्ली एक्शन कमेटी के अध्यक्ष अब्दुल्लाह ने सर सैयद डे अवार्ड से नवाजे गये खैरूल बशर को बधाई देते हुए कहा कि सर सैयद अहमद खान द्वारा स्थापित एएमयू में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को सारी दुनिया सम्मान के नजरिए से देखती है। उन्होंने कहा कि दिल्ली के दरियागंज में 17 अक्टूबर 1817 को जन्मे सर सैयद अहमद ने अरबी, फारसी, उर्दू में दीनी तालीम ली। न्यायिक सेवा में रहकर पहले दिल्ली व आगरा में नौकरी की। 1864 में मुंसिफ के रूप में अलीगढ़ में तैनात हुए। यह आगमन सर सैयद के लिए क्रांतिकारी साबित हुआ। 1857 की क्रांति ने उन्हें झकझोर दिया। सर सैयद ने उसी दौरान ईस्ट इंडिया कंपनी में नौकरी शुरू की। अंग्रेजों को उन्हीं की भाषा में जवाब देने के लिए लंदन के आक्सफोर्ड व कैंब्रिज यूनिवर्सिटी जैसे संस्थान भारत में खोलने का सपना देखा।
इस मौके पर शकील अहमद अंसारी ने कहा कि सर सैयद अहमद खान ने आठ जनवरी 1877 को 74 एकड़ फौजी छावनी की जमीन पर मोहम्मडन एंग्लो ओरिएंटल (एमएओ) कालेज की नींव रखी। 1920 में इसी कालेज को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का दर्जा मिला। सर सैयद अहमद खान शिक्षा के क्षेत्र के महापुरुष के रूप में स्थापित हैं।
इस मौके पर मुख्य रूप से मिस्बाहुददीन सिद्दीकी मिस्वा, अरशद राही, मोमिन सिद्दीकी, अय्यूब अंसारी, महताब, सुल्तान अली, मजहर, युनूस अंसारी, इरफान घोसी, आजम अली घोसी, अंजुम तारिक, अनवर अली, नईम अरशद, अशफाक, आलम, रहमत अली आदि लोग मौजूद थे।

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