गोरखपुर संवाददाता जितेंद्र यादव की रिपोर्ट
भविष्य में अनुसूचित जाति /जनजाति की संविधान पद्धत अनुसूची में किसी प्रकार की उपवर्गीकरण या क्रीमीलेयर लागू न हो कानून को संविधान की नवी सूची में शामिल किया जाए –हरि शरण गौतम
मा० सर्वोच्च न्यायालय (Apex court) में योजित विशेष अनुज्ञा याचिका (Ε.Λ.Νο. 2317/2011) दविन्दर सिंह अन्य बनाम पंजाब सरकार में अनु०जाति/जनजाति के आरक्षण के सम्बन्ध में पारित निर्णय दिनांक 01-00-2024 से रामरत अनु०जाति/जनजाति समाज के लोग मर्माहत व व्यथित है।
मा० सर्वोच्च न्यायालय में पूर्व में योजित विशेष अनुशा याचिका इ०वी० चिन्नैया बनाम आन्ध्र प्रदेश सरकार में दिनांक 25-11-2004 को 5 सदस्यीय संविधान पीठ द्वारा यह निर्णय पारित किया गया था कि अनुसूचित जाति/जनजाति की सूबी में समस्त जातियों के समूह में एकरूपता/समरूपता है। इसमें किसी प्रकार का वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है। मा० सर्वोच्च न्यायालय द्वारा 5 सदस्यीय संविधान पीठ के 4-1 के निर्णय को इस 7 सदस्यीय संविधान पीठ के 6-1 के निर्णय के आधार पर कार्य व व्यवसाय के आधार पर विविधता का उल्लेख करते हुए राज्यों को उपवर्गीकरण करने तथा क्रीमीलेयर लागू करने का निर्णय प्रदान किया गया है।
संविधान के मौलिक अधिकार के भाग-3 में अनु० 13 (2) में प्राविधानित है कि, राज्य ऐसी कोई विधि नहीं बनायेगा जो इस भाग (मौलिक अधिकार) द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छिनती है या न्यून करती है और इस खण्ड के उल्लंघन में बनाई गयी प्रत्येक विधि उल्लंघन की मात्रा तक शून्य होगी। अतः संवैधानिक व्यवस्था में प्रतिस्थापित कानून में संशोधन / परिवर्धन का अधिकार राज्यों में निहित नहीं है।
मा० सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिनांक 01-08-2024 को दविन्दर सिंह बनाम पंजाब राज्य में पारित निर्णय में अनु० जाति/जनजाति की सूची में राज्य सरकारों को उपवर्गीकरण करने व क्रीमीलेयर लागू करने का अधिकार प्रदान किया गया है। संविधान के अनुच्छेद 15(4) एवं 16(4) में अनु०जाति/जनजाति को सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछडे वर्गों को शैक्षिक संस्थानों और राजकीय सेवाओं में नियुक्ति और पदों पर आरक्षण की व्यवस्था का मौलिक अधिकार प्रदत्त है। फलस्वरूप उक्त व्यवस्था के विपरीत अनु० जाति/जनजाति में उपवर्गीकरण व क्रीमिलेयर की अवधारणा संविधान के अनु० 15 (4) 16(4), 13(2). 341(2). 342(1) व (2) के विरूद्ध व Ultra vires है।
अनु० जाति/जनजाति समाज में यदि क्रीमीलेयर की श्रेणी में कोई व्यक्ति आ गया है तो उसका चयन नहीं होगा। यदि क्रीमीमिलेयर नहीं है तथा न्यूनतम अर्हता नहीं रखता है तो उसका भी चयन नहीं होगा। फलस्वरूप दोनों वर्गों के लोग अनर्ह समझे जायेगेसाथी Not found suitable करके 3 वर्ष के पश्चात उक्त पद को UR (अनारक्षित) करके धीरे-धीरे आरक्षण समाप्त करने की मंशा परिलक्षित हो रही है।
आरक्षण गरीबी निवारण का कार्यक्रम नहीं है बल्कि अनु०जाति/जनजाति, जो सदियों से उपेक्षित व छूआछूत का शिकार रही हैं तथा सामाजिक व शैक्षिक रूप से पिछडा वर्ग रहा है उनका प्रतिनिधित्व है जो कि मौलिक अधिकार के अनु० 15(4) व 16(4) में प्रदत्त है।
अनु० जाति/जनजाति में क्रीमीलेयर व उपवर्गीकरण से समाज व समूह में समरूपता व सहयोग की भावना समाप्त हो जाएगी। यह समूह आपस में वर्गीकरण करने से विघटित होगा और इसमें आपसी फूट पैदा होगी। और, यह स्थिति मा० सर्वोच्च न्यायालय के उक्त निर्णय के कारण उत्पन्न होगी।
आज भी दलितों/आदिवासियों के साथ उत्पीड़न / दुर्व्यवहार / बलात्कार और हत्याओं की घटनाए आए दिन हो रही है। Atrocites Act (SC) 1989 के बावजूद अपराधियों के विरूद्ध कोई कार्यवाही नहीं की जाती है। लगभग 90 प्रतिशत मामलों में बाइज्जत बरी कर दिया जाता है। आज भी जो लोग थोड़ा पद और स्थान पाए है अथवा वंचित है, सबके साथ जातिगत भेदभाव विद्यमान है जो कि सभी अनु० जाति के साथ होता है।
क्राइम मुखबिर न्यूज
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