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अमेरिका ने हसीना से ‘सेंट मार्टिन द्वीप’ मांगा, जिस पर अंग्रेजों का कब्जा था

भारत-नेपाल सीमा संवाददाता जीत बहादुर चौधरी की रिपोर्ट

काठमाण्डौ,नेपाल।  सेंट मार्टिन द्वीप, जिसने बांग्लादेश की राजनीति में खूब हंगामा मचा रखा है ।

क्या आप जानते हैं, यह द्वीप केवल 3 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। वहीं, म्यांमार से इसकी दूरी सिर्फ 5 मील है। 

ढाका ट्रिब्यून के मुताबिक, इस द्वीप को 18वीं सदी में अरब व्यापारियों ने बसाया था। उन्होंने इसका नाम ‘जज़ीरा’ रखा। इसके बाद इसे ब्रिटिश सरकार ने अपने अधिकार में ले लिया।

चटगांव के डिप्टी कमिश्नर के नाम पर इस द्वीप का नाम ‘सेंट मार्टिन’ द्वीप रखा गया। इस द्वीप को बंगाली भाषा में ‘नारिकेल जिंजिराउ’ (नारियल द्वीप) या दारुचिनी द्वीप (दालचीनी द्वीप) कहा जाता है। यह बांग्लादेश का एकमात्र मूंगा द्वीप है।

पर्यटन के अलावा यह द्वीप व्यापार के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस द्वीप पर 9 गांव हैं, जिनमें लगभग 3,700 लोग रहते हैं।

उनका व्यवसाय मछली पकड़ना, चावल और नारियल की खेती करना है। यहां के किसान अपनी उपज पड़ोसी देश म्यांमार के लोगों को बेचते हैं।

भौगोलिक स्थिति अहम है, कहा जाता है कि यहां से चीन-भारत पर नजर रखी जा सकती है ।

सेंट मार्टिन की भौगोलिक स्थिति बहुत महत्वपूर्ण है। डेली स्टार के मुताबिक, अगर कोई देश सेंट मार्टिन में सैन्य अड्डा बनाता है तो उसे मलक्का जलडमरूमध्य के पास जमीन हासिल होगी।

चीन परिवहन के लिए इस मार्ग का उपयोग करता रहा है। इस द्वीप का इस्तेमाल न केवल चीन और म्यांमार पर नजर रखने के लिए किया जा सकता है, बल्कि यह जानने के लिए भी किया जा सकता है कि भारत यहां से क्या कर रहा है।

दिलचस्प बात यह है कि म्यांमार सेंट मार्टिन द्वीप पर भी दावा करता है। 1937 में म्यांमार के ब्रिटिश शासन से अलग होने के बाद भी यह द्वीप ब्रिटिश भारत का हिस्सा बना रहा।

1947 में भारत को आज़ादी मिलने के बाद भी ब्रिटेन ने इस द्वीप पर अपना नियंत्रण बनाए रखा। हालाँकि, कुछ समय बाद पाकिस्तान ने इस पर कब्ज़ा कर लिया।

1971 में पाकिस्तान के अलग होने के बाद बांग्लादेश ने इस द्वीप पर अपना नियंत्रण बनाए रखा।

द डेली स्टार की रिपोर्ट के मुताबिक, 1974 में बांग्लादेश और म्यांमार दोनों इस बात पर सहमत हुए कि सेंट मार्टिन द्वीप पर बांग्लादेश का नियंत्रण होगा ।

2018 में, म्यांमार ने ‘सेंट मार्टिन द्वीप’ को अपने आधिकारिक मानचित्र का हिस्सा घोषित किया।
हालांकि बांग्लादेश की आपत्ति के बाद विदेश मंत्रालय ने अपनी गलती मानी और इस नक्शे को हटा दिया ।
इससे पहले भी कई बार म्यांमार की सेना इस इलाके में बांग्लादेशी नागरिकों पर हमला कर चुकी है ।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, रोहिंग्या म्यांमार से भागने और बांग्लादेश में घुसने के लिए भी इस द्वीप का इस्तेमाल करते हैं।

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