रायबरेली संवाददाता सन्दीप मिश्रा की रिपोर्ट

रायबरेली जिले का महिला जिला अस्पताल मैं सदियों से चली आ रही बधाई परंपरा आज भी बदस्तूर जारी है। खाने को तो महिला अस्पताल में तमाम सुविधा उपलब्ध हैं। जिससे कि पैसों पीड़िता को अन्य स्थानों पर न भटकना पड़े लेकिन महिला जिला अस्पताल की बधाई परंपरा ने जिले में प्राइवेट नर्सिंग होम की एक श्रृंखला बना रखी है और इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि जिला अस्पताल में जिस तरह पैसों मिलने महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है और उनके दिमागदारों को जिस तरह वहां के कर्मचारी दूध कहते हैं उसे बेज्जती से बचने के लिए मध्य और उच्च वर्ग के लोग निजी नर्सिंग होम का सहारा लेते हैं जहां पैसा भले ही ज्यादा लग जाता हो लेकिन जच्चा बच्चा और इमानदारो की इज्जत बची रहती है इसी का उल्टा जब गरीब परिवारों की पैसों पीड़ित को जब महिला जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया जाता है तो वहां पर भर्ती होने से लेकर पैसा होने तक यहां तक की मरीज के डिस्चार्ज होने तक का गैस सरकारी फीस तय है। जिस का बिना कोई भी मरीज ना तो अपने जच्चे को और ना ही बच्चे को सा कुशल अस्पताल से बाहर ले जा सकता है उसे हर हाल में अस्पताल से बाहर निकलने पर बधाई सूची देना ही पड़ेगा वही जिन मरीजों के तीमारदारों ने यह कह दिया कि पैसा देने में असमर्थ है या थोड़ा बहुत कानून का पाठ अस्पताल के कर्मचारियों को सिखा दिया तो फिर यह मान लीजिए कि आपका मरीज को जिले में कोई भी स्थान नहीं मिलेगा जहां पर आप मरीज का इलाज कर सके तत्काल आपको लखनऊ ले जाने की सलाह देते हुए अस्पताल की चिकित्सा एवं स्टाफ नर्स मरीज की छुट्टी बनकर इमानदारो के हाथों में थमा देती है इतना ही नहीं प्रसव के दौरान दिमागदारों से अस्पताल कर्मचारी और डॉक्टर शादी कागज पर यह लिख लेते हैं कि मरीज की हालत खराब है बच्चे की भी हालत गड़बड़ है इस दौरान यदि कोई भी अप्रिय घटना होती है तो उसे सबके जिम्मेदार जिम्मेदार को ही बनाया जाता है कहा जा सकता है कि यदि बच्चा हो गया तो आपकी किस्मत है और नहीं हो पाया तो आपने पहले से ही अस्पताल में लिख रखा है कि हमें अस्पताल की हर शर्तें मंजूर है यह सब लिखने के बाद ही मरीज को अस्पताल के वार्ड में पूरे की तरह डाल दिया जाता है जहां उसे जा भी नहीं पता होता कि जिस पेट पर वह लेती है वह बेटे भी कितनी देर तक के साथ रहेगा क्योंकि अस्पताल कर्मचारी मरीज और उनके दिमागदारों से यह कह देते हैं कि अस्पताल में कोई भी दिक्कत खाली हो उसे पर ले जाकर मरीज को लगा दें जब मरीज को दिक्कत हो तो लाकर डॉक्टर के पास दिखा देना इन सब के बाद भी प्रसव के बच्चा चाहे बेटा हो या बेटी नॉर्मल डिलीवरी हो या ऑपरेशन से अस्पताल कर्मचारियों को बधाई देना ही रहता है मजेदार बात यह है कि या बधाई आज सदियों से अस्पताल में गौर की तरह काम कर रहा है लेकिन इस शुल्क पर तमाम शिकतों के बाद ही कोई कार्यवाही अभी तक करने की हिम्मत जिला प्रशासन या जिला अस्पताल के शासन में उठाने की सहमत नहीं की है नतीजा यह है कि तमाम शिकायतों के बाद भी जब अस्पताल प्रशासन द्वारा इस पर रोक नहीं लग पाई। तो मरीज और तीमारदारो ने इसे नियत और अस्पताल की अतिरिक्त फीस समझ ली है । आज अगर रायबरेली जिले में नॉर्मल डिलीवरी या ऑपरेशन से पैदा होने वाले बच्चो के तीमारदारों से पूछा जाए तो उनका भी यही जवाब रहेगा की बिना बधाई शुल्क के तो अस्पताल से बाहर जच्चा बच्चा बच्चा को सकुशल लेकर निकल पाना असंभव है।
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