नेपाल-भारत सीमा संवाददाता जीत बहादुर चौधरी की रिपोर्ट
काठमाण्डौ,नेपाल। सूर्यदेव की आराधना कर चार दिनों तक श्रद्धापूर्वक मनाया जाने वाला छठ पर्व आज से विधिवत शुरू हो गया है।
पहला दिन आज (मंगलवार) नहाय-खाय से मनाया जा रहा है ।
इस दिन ब्रतालु स्नान करके अरब-अरबाइन खाना खाते हैं।
पारिवारिक सुख-समृद्धि और संतान के कल्याण के लिए मनाए जाने वाले इस पर्व का दूसरा दिन बुधवार को है।
बुधवार की शाम ब्रतालु चावल, चीनी और दूध से बनी खीर को प्रसाद के रूप में ग्रहण कर खरना की रस्म पूरी करेंगे ।
तीसरा दिन गुरुवार छठ का मुख्य दिन है. इस दिन शाम को तालाब के किनारे डूबते सूर्य को पूजन सामग्री के साथ अर्घ्य देने की परंपरा है।
आखिरी दिन शुक्रवार की सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद छठ पर्व का विधिवत समापन हो जाएगा. इस दिन को पारण कहा जाता है ।
छठ पर्व के दौरान बांस की ढाकी, डगरी, मिट्टी का कोसिया कुरबार, हाथी जैसी सामग्रियां चढ़ाई जाती हैं।
इसी तरह भगवान सूर्य को अर्घ्य के रूप में ठकुवा, भुसुवा, केला, नमकीन, गन्ना, हल्दी, अदरक, सब्जियां और विभिन्न प्रकार की मिठाइयां और फल चढ़ाये जाते हैं ।
छठ पर्व के दौरान, विशेष रूप से अर्घ्य के दिन, ब्रतालु में भोजन और पानी त्यागकर 48 घंटे तक उपवास करने की परंपरा है।
इसलिए छठ पर्व को भक्ति की कठोर साधना माना जाता है।
अस्ताचलगामी और उगते सूर्य को अर्घ्य के रूप में दी जाने वाली सामग्री ग्रहण करने और वितरित करने की परंपरा है। इसीलिए यह त्यौहार सामाजिक समरसता और एकता का प्रतीक माना जाता है।
तराई-मधेश में छठ पर्व की तैयारियों ने पूरे क्षेत्र को उत्सवमय बना दिया है।
पूजा सामग्री खरीदने के लिए बाजार में भीड़ उमड़ रही है, वहीं नदियों, तालाबों और जलाशयों के घाटों को विशेष रूप से सजाया जा रहा है।
जनकपुर के गंगासागर, धनुसागर, अंगराजसर, दशरथ तालाब समेत अन्य ऐतिहासिक जलाशय तटों को नई दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है।
मिथिलांचल सहित तराई-मधेश अब छठ के मधुर गीत से गूंजने लगा है। हाल ही में पहाड़ी इलाकों के निवासी भी छठ पर्व मनाने लगे हैं।
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