भारत-नेपाल सीमा संवाददाता जीत बहादुर चौधरी की रिपोर्ट
काठमाण्डौ (नेपाल)। पश्चिमी थारू समुदाय में आज गुरही पर्व मनाया जा रहा है।
प्रत्येक थारू गांव में प्रथम पर्व के रूप में मनाया जाने वाला गुरही पर्व हर वर्ष नागपंचमी के दिन मनाया जाता रहा है। गुरही त्यौहार जगह-जगह नाच-गाकर मनाया जाता है।
वहीं धनगढ़ी में 2010 से ही गुरही पर्व संस्थागत रूप में मनाया जाता रहा है ।
सखी नेटवर्क कैलाली जिले की कार्यकारी अध्यक्ष उन्नति चौधरी ने कहा कि इस वर्ष भी सामूहिक गुरही धनगढ़ी के गुहरी चौक पर मनाया जायेगा ।
उनके अनुसार, इसे बढ़ावा देने और संरक्षित करने, नई पीढ़ी को संस्कृति के बारे में जानकारी देने और हस्तांतरित करने, आपसी सद्भाव और अन्य समुदायों को गुरही के बारे में जानकारी देने के लिए गुरही त्योहार को भव्यता के साथ मनाया जाता है।
वैसे तो गुरही बच्चों से जुड़ा त्योहार है, लेकिन हाल ही में युवाओं सहित सभी उम्र के लोग इसे मना रहे हैं।
इस त्योहार में कपड़े का गुरहा गुरही (गाने वाला कीड़ा) बनाकर दोपहर में चौर या चौबाटो में बेचने की परंपरा है।
लड़कियाँ गुड़ही के साथ घुघरी (मकई, केला या चना) भी फेंकती हैं। बच्चों और लड़कों द्वारा ‘दे घुघरी दे घुघरी’ कहकर फेंकी हुई गुरही को लाठी या डंडों से पीटने की प्रथा है। स्थानीय भाषा में इसे गुरही असरैना कहा जाता है ।
ऐसी लोक मान्यता है कि गुरही पर्व मनाने से बच्चों को बीमारियों से मुक्ति मिलती है. इसी तरह यह भी माना जाता है कि उन्हें आंखों में जलन और बुखार जैसी समस्याएं नहीं होती हैं। गुरही को पीटने का मतलब है बीमार व्यक्ति को पीटना और गांव से बाहर निकाल देना।
थारू समुदाय के गुरही, कठरिया थारू समुदाय के पचैया पर्व के अवसर पर कैलाली के विभिन्न स्थानीय स्तरों पर आज स्थानीय सार्वजनिक अवकाश दिया गया है ।
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