spot_img
Homeदेश - विदेशनेपाल में क्यों लगाए गए भारतीय मसालों पर प्रतिबंध ?

नेपाल में क्यों लगाए गए भारतीय मसालों पर प्रतिबंध ?

क्राइम मुखबिर से उप संपादक रतन गुप्ता की रिपोर्ट

नेपाल में मसालों की कंपनियां आजकल लोगों पर कहर बरपा रही हैं, वह भी अपने उत्पाद को बेचकर । रिपोर्ट के मुताबिक पैसे के मद में बेहोश कंपनियों ने अपने मसालों में ऐसे तत्व (एथिलीन ऑक्साईड) निश्चित सीमा से अधिक मिलाना शुरू कर दिया है जो उपभोक्ताओं को कैंसर जैसी बीमारी का ग्रास बना रही है ।

हालांकि यह जानकारी पहले–पहल यूरोप से आई जहां कई देशों ने भारतीय मसालों के दो बड़े ब्रांडों एमडीएच और एवरेस्ट के उत्पाद के बिक्री पर रोक लगा दी । इन मसालों की कंपनियों की कहानी का यहीं अंत नहीं होता । मालदीव, बंगलादेश और आस्ट्रेलियाई भोज्य नियामकों ने भारतीय मसालों के नमूनों की जांच शुरू कर दी है, वहीं यूरोपीय यूनियन के देशों ने भी जांच में भारतीय चिल्ली पिपर्स व पीपरकार्ण में कैंसर उत्पन करने वाले पदार्थों की मौजूदगी पाई ।

इतना ही नहीं, सिंगापुर और हांगकांग के बाद नेपाल ने भी एमडीएच व एवरेस्ट के मसालों की खरीद व आयात पर रोक लगा दी है । नेपाल के भोज्य तकनीकी व गुणवत्ता विभाग ने बताया है कि इसने भारतीय दो मसाला ब्रांडों एमडीएच व एवरेस्ट के उत्पाद के निर्यात व बिक्री पर रोक लगा दी है । इसके साथ ही नेपाल ने मसाले में मौजूद एथिलीन ऑक्साईड की सीमा की जांच के लिए कार्रवाई भी शुरू कर दी है । विभाग के महानिदेशक डा । मतीना जोशी वैध्य ने कहा है कि नेपाल के पास जांच की सही सुविधा नहीं है, इसलिए अगर भारत जांच के उपरांत चीजों तो सही पाता है नेपाल अपने रोक को वापस ले लेगा ।

विभाग के प्रवक्ता मोहन कृष्ण महर्जन ने बताया है कि एवरेस्ट और एमडीएच मसालों के उत्पाद के आयात व बिक्री पर नेपाल में रोक लगा दी गई है । महर्जन के मुताबिक इन दोनों ब्रांडों के उत्पादों की जांच की जा रही है । इन उत्पादों पर रोक की कार्रवाई हांगकांग व सिंगापुर में लगे रोक के बाद की गई है । हालांकि भारत सरकार के सूत्रों ने इस बीच कहा था कि विभिन्न देशों में मसाले में एथिलीन ऑक्साईड की मात्रा ०.७३ फीसदी से ७ फीसदी तक रखे जाने की स्वीकृति है । सूत्रों ने यह भी बताया कि जिन देशों में रोक की कार्रवाई की गई है इससे देश के निर्यात पर महज एक फीसदी का अंतर पड़ेगा ।

इस बीच स्पाईस बोर्ड ऑफ इंडिया ने भी भारतीय मसाले की गुणवत्ता को लेकर कार्रवाई शुरू कर दी है । बोर्ड ने तकनीकी व वैज्ञानिक समिति के सिफारिशों को लागू कर दिया है जिसके तहत मसालों के कारकों का विश्लेषण, कार्यस्थलों का निरीक्षण व नमूनों का संकलन किया जाता है और उसे मान्यता प्राप्त प्रयोगशालाओं में जांच के लिए भेजा जाता है । बोर्ड ने अखिल भारतीय मशाला निर्यात फोरम व भारतीय मसाला एवं भोज्य पदार्थ निर्यात एसोसिएशन जैसे १३० संगठनों से इस मसले पर विचार विमर्श भी शुरू कर दिया है ।

साथ ही बोर्ड ने एथिलीन ऑक्साईड की मात्रा को लेकर एक मार्गदर्शिका भी जारी किया है । लेकिन जब बोर्ड के निदेशक डा । ए.बी । रमात्री से इस मसले पर बात की गई तो उन्होंने कहा कि वह अभी एडिशनल सेक्रेटरी के पास बैठी हुई हैं, इसलिए वह कोई बात नहीं कर सकती ।

उधर, पिछले अप्रील के दौरान हांगकांग के फुड सैफ्टी वाचडॉग ने भी भारतीय ब्रांड एमडीएच और एवरेस्ट के मसालों पर रोक लगा दी थी । इसने इन कंपनियों के मसालों में कैंसर को बढ़ावा देने वाली कैमिकल एथिलीन ऑक्साईड की अत्यधिक मात्रा पाया था । हांगकांग सरकार की एक संस्था, द सेंटर फॉर फुड सैफ्टी ने पिछले ०५ अप्रील को घोषणा की थी कि जागरूकता अभियान के तहत पाया गया कि एमडीएच ग्रुप का सांभर मशाला पाउडर व करी पाउडर में एथिलीन ऑक्साईड की मात्रा अत्यधिक है । जब इस मामले में एमÞडीएच के मीडिया को संबोधित करने वाले लोगों से संपर्क करने की कोशिश की गई तो उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया । वहीं, जब एमडीएच के प्रवक्ता सुशील मंसोत्रा से बात की गई तो उन्होंने कहा कि वह व्यस्त हैं और कल बात करेंगे । हालांकि उन्होंने इतना जरूर कहा कि उनके मसाले के निर्यात व बिक्री पर कहीं कोई रोक नहीं है ।
काबिले जिक्र है कि भारत ने मसाले के बाजार में विश्व में अपने को पावर–हाउस के रूप में स्थापित किया है ।
स्पाईस बोर्ड ऑफ इंडिया के आंकड़ों पर अगर भरोसा किया जाए तो भारत २०० मसालों की सूची के साथ १८० देशों में इनका निर्यात करता है । इस व्यापार का आर्थिक क्षमता ४०० करोड़ डॉलर का है । साथ ही भारतीय मशाले का घरेलू बाजार लगभग १००० करोड़ डॉलर का है । विश्व में मसाले की खपत में भारत पहले पायदान पर आता है । लेकिन एथिलीन ऑक्साईड के ज्यादा मात्रा में पाए जाने की घटना से चिंताजनक स्थिति का उत्पन्न होना स्वाभाविक है ।

कहानी यहीं समाप्त नहीं होती, अमेरिका के औषधि प्रशासन ने भी एथिलीन ऑक्साईड को लेकर एमडीएच व एवरेस्ट के उत्पादों की जांच शुरू कर दी है । अमेरिका में किए गए एक विश्लेषण के मुताबिक एमडीएच के १४.५ फीसदी मशाले बैक्टेरिया की मौजूदगी के कारण अस्वीकार कर दिए गए । स्पष्ट है कि भारतीय मशाला बाजार के लिए यह कोई अच्छा संकेत नहीं है क्योंकि एमडीएच व एवरेस्ट दोनों भारतीय ब्रांड लोकप्रिय व परखप्रिय हैं । दिल्ली स्थित एमडीएच १०५ पुराना एक परिवार आधारित ब्रांड है । इसके ६० ब्लेंडेड मशाले हैं ।

यह अपना उत्पाद ८० देशों में निर्यात करता है । अमिताभ बच्चन व शाहरुख खान सरीखे सीने स्टार इसके ब्रांड एंबेसेडर हैं ।
हालांकि भारतीय मशालों के दूषित होने की यह पहली घटना भी नहीं है । २०१४ के दौरान बायोकेमिस्ट्री के एक्सपर्ट इप्सिता मजूमदार ने कोलकाता के मसाला ब्रांडों के उत्पादों जैसे मिर्च पाउडर, गरम मसाला आदि की जांच की थी और उन्होंने इनमें शीशे कण पाए थे । साथ ही पिछले अप्रील के दौरान फुड एंड ड्रग्स कंट्रोल ऑथरिटीज ने गुजरात से ६०, ००० किलोग्राम दूषित मसाले बरामद किए जिसमें चिल्ली पाउडर, टरमरिक और कोरिएंडर पाउडर व अचार के मशाले शामिल थे ।

ऐसे में यह कैसे कहा जा सकता है कि भारतीय मशाले का भविष्य सुरक्षित है । केंद्र सरकार ने सभी राज्यों के सरकारों के लिए मशालों के गुणवत्ता को लेकर जांच के लिए निर्देश जारी किए हैं । स्पाईस बोर्ड ने भी मशाले में एथिलीन ऑक्साईड के प्रयोग को लेकर निर्यातकों के लिए गाईडलाइंस जारी किए हैं । बोर्ड के पास गुणवत्ता की परख के लिए पांच प्रयोगशाला उपलब्ध हैं । फुड सैफ्टी एंड स्टैंडर्ड ऑथरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) ने भी सैंपल लेकर मशालों की जांच शुरू कर दी है । हालांकि भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय का दावा है कि देश के पास कीटनाशक को लेकर विश्व के सर्वोत्तम मैक्सिमम रेसिड्यू लिमिट्स (एमआरएल) का मानक उपलब्ध है । मानक को परखने के लिए जी तोड़ मेहनत की जाती है ।

हालांकि कुछ कमियां तो जरूर हैं । २०२२ के दौरान फुड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन ने पाया था कि मशाला उद्योग की इकाईयों में सफाई के साधन अपर्याप्त हैं ।
‘कहना गैरजरूरी है कि भारत सदियों से मसालों का निर्यात करता रहा है । लेकिन देश की यह प्रतिष्ठा सरकारी अनदेखी के कारण धीरे–धीरे गिरती जा रही है । हमें जानकारी नहीं है कि मसाले किस हद तक दूषित हैं । हालांकि एथिलीन ऑक्साईड का प्रयोग कम से कम किसान तो नहीं करते । एथिलीन ऑक्साईड उपज के बाद मशाले के प्रोसेसिंग का प्रतिफल है’ । ये शब्द पर्यायवरणविद नरसिम्हा रेड्डी डोंथी के हैं ।

रेड्डी यहीं नहीं रूकते । वह आगे कहते हैं, पूर्व में भी भोज्य पदार्थों के प्रोसेसिंग में अत्यधिक कीटनाशक का प्रयोग आम के निर्यात पर नकारात्मक असर डालता रहा है । इसके चलते अमेरिका को किए जाने वाले आम के निर्यात में भारी कमी आई । निर्यात पर काम करने वाली दिल्ली स्थित ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के मुताबिक फिसलती गुणवत्ता के चलते भारत से मशाले का निर्यात को खोखला हो जाएगा । इससे निर्यात में ५० फीसदी की भारी कमी आएगी । अपने हाल के एक रिपोर्ट में जीटीआरआई ने कहा है कि अगर चीन भारतीय मशाले के स्तित्व पर सवाल करने लगे तो भारतीय मशाले का निर्यात आधा हो जाएगा । हालात और भी खराब हो सकते हैं क्योंकि गुणवत्ता में ह्रास के कारण यूरोपीय युनियन के कई देश भारतीय मसाले को भी खारिज करते रहे हैं । कहना गैरजरूरी है कि अगर भारतीय मसाले के रुतबे को बचाए रखना है तो देश को खाद्य सुरक्षा, पारदर्शी प्रक्रिया व सख्त कानून को प्राथमिकता देनी होगी ।

क्राइम मुखबिर न्यूज
अपराध की तह तक !

RELATED ARTICLES

Most Popular

error: Content is protected !!