महाराजगंज से उप संपादक रतन गुप्ता की रिपोर्ट
महराजगंज। ब्रांडेड के नाम पर जेनेरिक दवाओं में धंधेबाज खूब खेल कर रहे हैं। कुछ रैपर बदलकर चार गुना मुनाफा कमा रहे हैं तो कुछ जेनेरिक दवा को ब्रांडेड बताकर बेच दे रहे हैं। इसके बाद भी जिम्मेदार सो रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार, दवा के कारोबार में धंधेबाजों ने ज्यादा मुनाफा लेने के लिए पूरा जाल बिछाया है। इसमें सीधे-साधे ग्राहक आसानी से फंस जाते हैं। सरकार ने सस्ते दाम पर दवाएं उपलब्ध कराने की पहल की तो इसमें भी खेल होने लगा। जेनेरिक दवाएं सस्ती होती हैं और ब्रांडेड महंगी। एक ही दवा के रेट में काफी अंतर होता है। जेनेरिक दवा सस्ती मिलेगा तो ब्रांडेड मंहगी मिलेगी।
सूत्रों की माने तो धंधेबाज, जेनेरिक को ही ब्रांडेड बताकर मरीजों को ऊंचे दाम पर बेच दे रहे हैं। मिलते-जुलते नाम और निगरानी नहीं होने से धंधेबाज चांदी काट रहे हैं तो मरीज ठगे जा रहे हैं। कंपनियों ने अपने ब्रांड नाम से मिलती-जुलती सस्ती जेनेरिक दवाएं बाजार में उतारी तो मकसद था मरीजों को सस्ता बेचना, लेकिन इनकी आकर्षक पैकिंग और उस पर लिखे एमआरपी से धंधेबाजों को फायदा हो रहा है।
जेनेरिक दवाओं को भी ब्रांडेड के स्थान पर (सब्स्टीट्यूट) बताकर महंगे दाम पर बेच रहे हैं। ग्राहकों को 25 से 30 प्रतिशत छूट का लाभ देकर इस तरह की बड़ी कंपनियों ने अपने ब्रांड के नाम से मिलती-जुलती सस्ती जेनेरिक दवाएं बाजार में उतारी है। यह इसलिए हुआ की मरीजों को फायदा हो। इसमें धंधेबाजों ने कमाई का जरिया ढूंढ़ लिया है।
सब्स्टीट्यूट बताकर महंगे दाम पर बेचते दवा
जेनरिक दवाइयों को भी ब्रांडेड के स्थान पर (सब्स्टीट्यूट) बताकर महंगे दाम पर गंभीर मरीजों को दवाओं को आराम से ग्रामीण बाजार में बेच दिया जा रहा है। अब बाजार में सिपला, मैनकाइंड, कैडिला, फाइजर जैसी प्रतिष्ठित दवा कंपनियों ने भी अपनी ब्रांडेड के अलावा जेनेरिक दवाएं भी बाजार में उपलब्ध कराई हैं। इन कंपनियों की जेनेरिक दवाइयों की पैकेजिंग भी ब्रांडेड जैसी ही होती है।
रेट के अंतर से हो रहा अधिक मुनाफा
बुखार के सबसे आम दवा पैरासिटामॉल को नामी कंपनी ने पैरामिप के नाम से उतारा है। इसी प्रकार एलर्जी की सबसे चर्चित दवा सिट्रीजीन का विकल्प एलर्जीन है। कैल्शियम, विटामिन और डी-3 को मिलाकर बने टेबलेट एमकॉल का विकल्प जेनरिक में जिरकॉल के नाम से है। एक ही ब्रांड की इन दवाइयों की कीमत में जमीन-आसमान का अंतर 234 है। जोड़ों में दर्द से संबंधित एक कंपनी की ब्रांड बाली दवा की 10 टैबलेट का पत्ता जहां 347 रुपये की है, वहीं उसकी जेनेरिक दवा का पत्ता 84 रुपये का है। हालांकि, दोनों दवाओं की पैकेजिंग एक जैसी ही है। इसलिए दुकानदार अक्सर ही ब्रांडेड का विकल्प बताकर जेनेरिक दवा ही पकड़ा देते हैं। बड़ा खेल यह है कि जेनेरिक दवाइयों पर जो एमआरपी दर्ज है, उस पर 40 प्रतिशत से अधिक कमीशन है। इसीलिए दुकानदार ब्रांडेड के नाम पर जेनेरिक माल बेच देते हैं।
जेनेरिक दवाओं को ब्रांडेड बताकर बेचना गलत है। इस तरह की शिकायत सामने नहीं आई है। अगर ऐसी बात है तो इसकी जांच की जाएगी। दवा खरीदने के दौरान अच्छी तरह से जांच परख करनी चाहिए।
–डीपी मौर्य, ड्रग इंस्पेक्टर
नई दवा इजाद की जाती है तो उसका पेटेंट होता है
केमिस्ट एंड ड्रगिस्टस् एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष अशोक चौरसिया ने बताया कि जब किसी बीमारी के इलाज के लिए नई दवा इजाद की जाती है तो उसका पेटेंट होता है, जो आमतौर पर 20 साल के लिए होता है। उस अवधि में दवा के सॉल्ट का प्रयोग दूसरा कोई नहीं कर सकता। जो कंपनी इस साल्ट के आधार पर दवा का उत्पादन करती है, वह रिसर्च से लेकर दवा वितरण तक के खर्च को लगाकर मूल्य में जोड़ देती है, जिससे उस दवा की कीमत बहुत अधिक हो जाती है। 20 साल बाद जब पेटेंट खत्म होता है तो वह साल्ट अन्य सभी कंपनियों के लिए भी उपलब्ध होता है। उस साल्ट के आधार पर जो दवाइयां बनती हैं, उन्हें अलग-अलग नाम से बाजार में बेचा जाता है।
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