पं वेद प्रकाश तिवारी ज्योतिष एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ
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अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान्जी को मैं प्रणाम करता हूँ
रुद्र अवतार श्रीहनुमान का बल, पराक्रम, ऊर्जा, बुद्धि, सेवा व भक्ति के अद्भुत व विलक्षण गुणों से भरा चरित्र सांसारिक जीवन के लिए आदर्श माना जाता हैं। यही वजह है कि शास्त्रों में श्रीहनुमान को ‘सकलगुणनिधान’ भी कहा गया है। हिन्दू पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक श्रीहनुमान 8 चिरंजीवी, सरल शब्दों में कहें तो अमर व दिव्य चरित्रों में एक है।
हनुमान उपासना के महापाठ श्रीहनुमान चालीसा में गोस्वामी तुलसीदास ने भी लिखा है कि – ‘चारो जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा।’
इस चौपाई में साफ संकेत है कि श्रीहनुमान ऐसे देवता है, जो हर युग में किसी न किसी रूप, शक्ति और गुणों के साथ जगत के लिए संकटमोचक बनकर मौजूद रहते हैं। हनुमानजी से जुड़ी यही विलक्षण और अद्भुत बात उनके प्रति आस्था और श्रद्धा गहरी करती है। यहां जानिए, श्रीहनुमान किस युग में किस तरह जगत के लिए संकटमोचक बनें और खासतौर पर कलियुग यानी इस युग में श्रीहनुमान कहां बसते हैं –
सतयुग – श्री हनुमान रुद्र अवतार माने जाते हैं। शिव का दु:खों को दूर करने वाला रूप ही रुद्र है। इस तरह कहा जा सकता है कि सतयुग में हनुमान का शिव रुप ही जगत के लिए कल्याणकारी और संकटनाशक रहा।
त्रेतायुग – इस युग में श्री हनुमान को भक्ति, सेवा और समर्पण का आदर्श माना जाता है। शास्त्रों के मुताबिक विष्णु अवतार श्री राम और रुद्र अवतार श्री हनुमान यानी पालन और संहार शक्तियों के मिलन से जगत की बुरी और दुष्ट शक्तियों का अंत हुआ।
द्वापर युग – इस युग में श्रीहनुमान नर और नारायण रूप भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के साथ धर्मयुद्ध में रथ की ध्वजा में उपस्थित रहे। यह प्रतीकात्मक रूप में संकेत है कि श्रीहनुमान इस युग में भी धर्म की रक्षा के लिए मौजूद रहे।
कलियुग – पौराणिक मान्यतओं में कलियुग में श्रीहनुमान का निवास गन्धमादन पर्वत (वर्तमान में रामेश्वरम धाम के नजदीक) पर है। यही नहीं, माना जाता है कि कलियुग में श्रीहनुमान जहां-जहां अपने इष्ट श्रीराम का ध्यान और स्मरण होता है, वहां अदृश्य रूप में उपस्थित रहते हैं। शास्त्रों में उनके गुणों की स्तुति में लिखा भी गया है कि –
‘यत्र-यत्र रघुनाथकीर्तनं तत्र-तत्र कृत मस्तकांजलिं।’
इस तरह श्रीहनुमान का स्मरण हर युग में अलग-अलग रूप और शक्तियों के साथ संकटमोचक बन जगत को विपत्तियों से उबारते रहे हैं
क्राइम मुखबिर न्यूज
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