रतन गुप्ता उप संपादक——-राप्ती नगर पालिका-1 के सिमारा के नवराज पांडेय धान की रोपाई के दौरान पौधों को पर्याप्त भोजन न मिलने से निराश हो जाते थे। हाल के वर्षों में पांडेय को ऐसी निराशा का सामना नहीं करना पड़ा। मशीन से धान की रोपाई के बाद से उनके लिए यह बहुत आसान हो गया है। रविवार को मशीन से धान की रोपाई करते मिले पांडेय ने कहा, ‘मुझे मशीन से धान की रोपाई करते हुए दो साल हो गए हैं। आज मुझे धान की रोपाई के लिए लोगों की तलाश नहीं करनी पड़ती।’ वह डेढ़ बीघा क्षेत्र में बरखा और चैते धान की रोपाई करते हैं।चितवन में धान की रोपाई में कृषि यंत्रीकरण का उपयोग बढ़ा है। चार साल पहले 60 बीघा क्षेत्र में मशीन से धान की रोपाई करने वाले किसान इसे बढ़ा रहे हैं। प्रधानमंत्री कृषि आधुनिकीकरण परियोजना, चितवन के अनुसार, इस वर्ष चावल जोन क्षेत्र में 200 बीघा क्षेत्र में किसान मशीनों से धान की रोपाई कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि परियोजना के माध्यम से पूर्व में अपनाई गई पद्धतियों ने किसानों को मशीनीकरण की ओर आकर्षित किया है। परियोजना का कहना है कि किसान इस दिशा में विशेष रुचि दिखा रहे हैं, क्योंकि कृषि में आधुनिकीकरण से किसानों की लागत कम होती है और उत्पादन बढ़ता है। प्रधानमंत्री कृषि आधुनिकीकरण परियोजना के चावल जोन समन्वय समिति के अध्यक्ष तेज प्रसाद बरतौला ने कहा कि लागत कम करने के लिए किसान मशीनीकरण की ओर बढ़ रहे हैं। बरतौला का अनुभव है कि कृषि मशीनीकरण और प्रौद्योगिकी के माध्यम से चावल उत्पादन की लागत में 25 प्रतिशत की कमी आई है। उन्होंने कहा, ‘हाथ से धान की रोपाई करने पर प्रति बीघा 16 हजार रुपये से अधिक लागत आती है। मशीन से 5 हजार रुपये में धान की रोपाई होती है।’ उन्होंने कहा, ‘पूर्व से किसानों का आना बंद हो गया है। यहां किसान मिलना मुश्किल है। ऐसे में किसान मशीनीकरण की ओर रुख नहीं कर सकते।’ उन्होंने कहा कि मशीन से धान की रोपाई करने पर बीज की लागत भी कम आएगी। जिस क्षेत्र में प्रति बीघा 40 बीघा बीज बोया जाता है, वहां मशीन से धान की रोपाई के लिए प्रति बीघा 12 किलो चावल पर्याप्त होता है। प्रधानमंत्री कृषि आधुनिकीकरण परियोजना किसानों के उत्पादन को बढ़ाने और लागत कम करने के लिए मशीनीकरण की दिशा में काम कर रही है। अब तक परियोजना ने चितवन में अनुदान पर आठ धान रोपने की मशीनें उपलब्ध कराई हैं। परियोजना के प्रमुख और वरिष्ठ कृषि अधिकारी महेश रेग्मी ने बताया कि इस साल भी परियोजना की योजना 85 प्रतिशत अनुदान पर धान रोपने की मशीनें उपलब्ध कराने की है। उन्होंने बताया कि चितवन में धान रोपने की मशीनों की मांग बढ़ी है। उत्पादन बढ़ाने और लागत कम करने के लिए किसानों की मांग के अनुसार 85 प्रतिशत तक अनुदान पर मशीनें वितरित करने की योजना है। परियोजना ने धान रोपने की मशीनों की ओर किसानों को आकर्षित करने के लिए काफी प्रयास किए हैं। किसानों के खेतों में बीज डालने से लेकर रोपने तक का काम परियोजना के कृषि तकनीशियनों द्वारा किया जाता था। उन्होंने बताया कि आजकल किसान खुद ही इसकी आदत डाल रहे हैं। मशीन से धान की रोपाई करने के लिए ट्रे में बीज रखना पड़ता है, लेकिन अब चितवन के किसान बीज बोने के लिए प्लास्टिक की चटाई बना रहे हैं। कृषि तकनीशियनों का कहना है कि ट्रे न होने की स्थिति में प्लास्टिक की चटाई लागत कम करने के लिए उपयुक्त है। रेग्मी ने कहा, ‘मशीन से धान की रोपाई करते समय एक ही लाइन में रोपाई होती है। हवा के अंदर जाने से रोग और कीट लगने की संभावना कम होती है।’ ‘पौधों की संख्या भी अधिक होती है, जिससे उत्पादन बढ़ता है।’ चितवन के मुख्य जिला अधिकारी प्रकाश पौडेल ने कहा कि मशीन ने जनशक्ति की कमी के बीच किसानों को बड़ी राहत दी है। रविवार को धान की रोपाई स्थल पर पहुंचे अधिकारी ने कहा, ‘नेपाल में जनसंख्या वृद्धि दर कम है। वहां काम करने वाले लोग नहीं हैं।’ ‘यह तकनीक किसानों के लिए उपयुक्त और आसान माध्यम है।’ चितवन जिला समन्वय समिति के प्रमुख नारायण प्रसाद अधिकारी ने कहा कि धान को उच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए और किसानों को इस तकनीक की ओर आकर्षित किया जाना चाहिए। चितवन में 27,207 हेक्टेयर क्षेत्र में वार्षिक धान की खेती की जा रही है। परियोजना के अनुसार इसकी उत्पादकता 4.2 टन प्रति हेक्टेयर है। चितवन में सिंचित क्षेत्र 26,308 हेक्टेयर है। इसमें से, मध्य-असार तक आठ प्रतिशत क्षेत्र में चावल लगाया गया है, चितवन के जिला कृषि विकास कार्यालय के योजना अधिकारी निर्मल पौडेल ने बताया। उनके अनुसार, कुल 2,198 हेक्टेयर क्षेत्र में चावल लगाया गया है।
रतन गुप्ता उप संपादक