spot_img
Homeकारोबारसुस्ता में सस्पेंशन ब्रिज ने बदली महिलाओं की दिनचर्या

सुस्ता में सस्पेंशन ब्रिज ने बदली महिलाओं की दिनचर्या

संवाददाता जीत बहादुर चौधरी की रिपोर्ट

नवलपरासी। ‘पहले हम सब्जियां उगाते थे, लेकिन बेच नहीं पाते थे। सारी उपज मवेशियों को खिलाने के बाद बर्बाद हो जाती थी।’ – सुस्ता की किसान सुशीला कोइरी भावुक होकर कहती हैं। लेकिन अब वह हर सुबह सिर पर सब्जियां लादकर नजदीकी बाजार जाती हैं, वह भी मुस्कुराते हुए। इस बदलाव की मुख्य वजह सस्पेंशन ब्रिज है। सुस्ता ग्रामीण नगर पालिका में एक साल पहले बना यह पुल अब गांव की महिलाओं के लिए नई संभावनाओं का द्वार बन गया है। खास तौर पर महिलाओं की जीवनशैली में आए बदलाव की वजह से इस पुल को ‘अर्थव्यवस्था का पुल’ कहा जाने लगा है।

1,571 मीटर लंबा और 1 मीटर 60 सेंटीमीटर चौड़ा यह पुल सुस्ता वार्ड नंबर 5 के दाएं किनारे पर स्थित सकारदिन्ही और बाएं किनारे पर स्थित सुस्ता गांव को जोड़ता है। निर्माण कंपनी त्रिशूली आश्रय जेवी कंस्ट्रक्शन ने 235 मिलियन रुपये की लागत से पुल का निर्माण पूरा किया।

सुस्ता के ग्रामीण इलाकों में पहले महिलाएं अपनी सब्जियां खेतों में ही बेचने को मजबूर थीं, लेकिन उन्हें बाजार तक नहीं ले जा पाती थीं। बाजार तक जाने का रास्ता लंबा था और नारायणी नदी पार करना बड़ा जोखिम भरा काम था। बरसात के मौसम में नदी पार करना और भी खतरनाक था। गांव के कुछ पुरुष अपनी सब्जियां बेचने के लिए भारतीय बाजार जाते थे, लेकिन अगर वे भारतीय बाजार जाते भी तो उन्हें न तो स्वाभिमान मिलता था और न ही उचित दाम। हालांकि, झूला पुल बनने से इन महिलाओं में हिम्मत आई है। सुशीला कहती हैं, ‘मैं स्कूल में पढ़ पाती हूं, लेकिन मैं अपने बच्चों को और पढ़ाना चाहती हूं। मैं पढ़ना तो चाहती थी, लेकिन पढ़ नहीं पाई। मेरे तीन बेटे हैं और मैं उन्हें और पढ़ाना चाहती हूं। बुजुर्ग की कमाई से घर का खर्च चलता है। सब्जी की खेती हो या गन्ना, मैं सभी कामों में साथ मिलकर मेहनत करती हूं। एक बार कमाई हो जाए तो मुझे किसी से पैसे नहीं मांगने पड़ेंगे और कोई मुझे नीची नजर से नहीं देखेगा।’ सुशीला केले की खेती करने की तैयारी कर रही हैं। उनके बगीचे में घर पर ही टिशू कल्चर तकनीक से उगाए गए केले के पौधों की ट्रे लगी हुई हैं। कोइरी कहती हैं कि भाद्र, आसोज के महीने में केले तैयार हो जाते हैं और चारद त्योहार के दौरान भी इनकी मांग बहुत होती है।

15 वर्षीय सरिता हरिजन की नेपाल पुलिस अधिकारी बनकर नेपाली लोगों की रक्षा करने और देश की सीमाओं की रक्षा करने की बड़ी इच्छा है। वह अभी 9वीं कक्षा में पढ़ रही हैं। उनका घर नारायणी नदी के उस पार सुस्ता भूमि में है। भारतीय आक्रमण के दौरान भूमि मार्ग से अपने देश नेपाल पहुंचने के लिए उनके माता-पिता को जो दर्द सहना पड़ा, उसने उन्हें देश की सीमाओं की रक्षा करने वाला नागरिक बनने के लिए प्रेरित किया है। वह कहती हैं, “मेरे माता-पिता ने बिना वर्दी के देश की सीमाओं की रक्षा की, अब मेरा बड़ा सपना वर्दी पहनकर देश की सीमाओं की रक्षा करना है।”

सुस्ता में पुल बनने से पहले, माध्यमिक विद्यालय के छात्रों के पास तीन विकल्प थे – नाव से नदी पार करके दूसरी तरफ स्कूल जाना, भारत की सीमा पर स्कूल जाना या स्कूल छोड़ देना। 24 वर्षीय राजमती हरिजन याद करती हैं, “हम सुबह 5 बजे उठते थे, नाव का इंतजार करते थे और नदी पार कर जाते थे। कभी-कभी जब नदी बढ़ जाती थी, तो हम स्कूल भी नहीं जा पाते थे। हम डरे हुए रहते थे।” अब, वह स्नातक की पढ़ाई के लिए त्रिभुवन कैंपस बेलाटारी जाने के लिए पुल का इस्तेमाल करती हैं।

छात्र सुरक्षित रास्ते पर चलकर माध्यमिक स्तर तक नियमित रूप से पढ़ाई करने लगे हैं। सुस्ता ग्रामीण नगर पालिका के शिक्षा विभाग के प्रमुख चंद्र बहादुर ठाड़ा मगर ने कहा कि 100 प्रतिशत छात्रों ने बुनियादी स्तर के बाद अपनी स्कूली शिक्षा जारी रखी है। वे कहते हैं, “पुल के बनने से छात्रों की नियमित उपस्थिति बढ़ी है। खासकर लड़कियां अधिक सुरक्षित महसूस करती हैं, जिससे स्कूल छोड़ने की दर में कमी आई है।” अब, स्थानीय सरकार भी पुल के आसपास की बस्तियों को लक्षित करके शिक्षा तक पहुंच का विस्तार करने की योजना बना रही है। जनता बेसिक स्कूल सुस्ता से आठवीं कक्षा पास करने के बाद पढ़ाई छोड़ने वाले छात्र भी अपनी पढ़ाई पर लौट आए हैं। नूरजहां खातून 8वीं कक्षा पास करने के बाद 2 साल तक घर पर ही रहीं। अब पुल बन जाने से वह श्री बीपी माध्यमिक विद्यालय बालीनगर में 9वीं कक्षा में पढ़ रही हैं। वह कहती हैं, “पहले सड़क नहीं थी, अब पुल बन गया है तो फिर से स्कूल जा पा रही हूं। पढ़ाई जो रुक गई थी, वह फिर शुरू हो गई है।”

सस्पेंशन ब्रिज ने न केवल अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाया है, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं को भी बेहतर बनाया है। सुस्ता बेसिक हेल्थ पोस्ट के प्रमुख अशोक कुर्मी चौधरी ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2023/024 में 6 गर्भवती महिलाओं ने घर पर ही बच्चे को जन्म दिया, वित्तीय वर्ष 2024/025 में 1 गर्भवती महिला ने चिकित्सा सहायता से घर पर ही बच्चे को जन्म दिया और वित्तीय वर्ष 2024-025 में घर पर बच्चे को जन्म देने वाली महिलाओं की संख्या शून्य रही।

“अब गर्भवती महिलाएं आसानी से स्वास्थ्य संस्थान आ जाती हैं और जिन मरीजों को रेफर करने की जरूरत होती है, वे पकलिहावा, सेमरी और परासी जाते हैं। पुल के पार मोटरसाइकिल और स्ट्रेचर ले जाए जाते हैं। कुर्मी कहते हैं कि अब स्वास्थ्य केंद्र पर जरूरी दवाएं लाना बहुत आसान हो गया है।”

पुल को देखने के लिए देशी-विदेशी पर्यटकों की संख्या भी बढ़ रही है। शनिवार, सार्वजनिक अवकाश और चारद त्योहार के दौरान पुल को देखने के लिए नेपाल और भारत से पर्यटकों की संख्या बढ़ रही है।

यहां की महिलाएं अब व्यवसाय से जुड़ने लगी हैं। सबरुन खातून पान की दुकान चला रही हैं, सुबह 7 बजे से शाम 7 बजे तक कारोबार करती हैं, उनका कहना है कि प्रतिदिन 600 से 900 की कमाई हो जाती है। वे कहती हैं, खेती की मुश्किलों से कारोबार करना आसान है और आमदनी भी अच्छी है। पुल देखने आने वाले लोग खुशी-खुशी पान खाते हैं और ले जाते हैं। इसी तरह सुमित्रा हरिजन ने पुल के सामने रेस्टोरेंट चला रखा है। नारायणी से ताजी मछली खाने के लिए पर्यटक रेस्टोरेंट में आते हैं। उनके पति नारायणी में मछली पकड़कर लाते हैं, जबकि सुमित्रा अपनी सास के साथ रेस्टोरेंट में व्यस्त रहती हैं। वे हर महीने 50 हजार तक कमा लेती हैं। वह कहती हैं, ‘मेरे पति नारायणी में मछली पकड़ते और बेचते हैं, मैं अपनी मां के साथ होटल चलाती हूं, हम खुश हैं, पहले पैसों की काफी दिक्कत थी, अब सब आसान हो गया है। दिनभर काम करते हैं और शाम को अपने परिवार के साथ बिताते हैं।’

दिहाड़ी मजदूरी कर अपना गुजारा करने वाली लाजो मुसहर को भी पुल बनने से काम पर जाना काफी आसान हो गया है। पिछले 11 सालों से वह घर बनाने का काम कर रही हैं और बरसात के मौसम में पैदल खेती का काम करती हैं। वह याद करती हैं, ‘बरसात के मौसम में हम खेती का काम करने के लिए नाव से नारायणी आते थे, लेकिन शाम को जब घर लौटते थे तो नारायणी बढ़ जाती थी और हम नाव पर वापस नहीं जा सकते थे, इसलिए हम नदी के किनारे बैठकर रात बिताते थे।’

जब पानी का बहाव कम होता था तो हम नाव से घर लौटते थे, लेकिन घर में पानी भर जाता था। वह कहती हैं कि उन्हें सब कुछ फेंकना पड़ता था क्योंकि वह खाना और पत्ते नहीं ले जा पाती थीं। अब पुल बन जाने से लाजो कहती हैं कि उन्हें अब चिंता नहीं रहती दिनभर काम पर जाने के बाद घर कैसे लौटें, यह सोचकर परेशान हैं। उनकी तरह गीता मुसहर, मोहरम मुसहर, सुनीता देवी कुर्मी अब दिहाड़ी मजदूरी के लिए गोपीगंज, सेमरी, बरदाघाट और परासी तक का सफर तय करती हैं। सुस्ता ग्रामीण नगर पालिका की उपाध्यक्ष गीता चौधरी कहती हैं कि सुस्ता में बना झूला पुल सिर्फ एक भौतिक संरचना नहीं है, बल्कि यहां की महिलाओं के लिए आर्थिक तरक्की का रास्ता भी है। वह कहती हैं, “नारायणी नदी पर बना पुल माताओं और शिशुओं के लिए सुरक्षित जीवन और बच्चों के उज्ज्वल भविष्य का द्वार बन गया है।” पुल के निर्माण से सुस्ता के आम लोगों की जिंदगी बदल गई है। आर्थिक बदलाव देखने को मिले हैं।

क्राइम मुखबिर न्यूज़ – अपराध की तह तक !

RELATED ARTICLES

Most Popular

error: Content is protected !!