महराजगंज:- कार्तिक माह में चल रहे “पंच महापर्वों” के चौथे दिन आज अन्नकूट एवं गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाएगा। भारतीय सनातन त्योहारों की यह दिव्यता रही है कि उसमें प्राकृतिक, वैज्ञानिक कारण भी रहते हैं। प्रकृति के वातावरण को स्वयं में समेटे हुए सनातन धर्म के त्योहार आम जनमानस पर अपना अमिट प्रभाव छोड़ते हैं। फसल के घर आने की प्रसन्नता में जहां दीपावली मनाई जाती है, वही दूसरे दिन मनाया जाता है। अन्नकूट यदि अन्नकूट का संधि विच्छेद किया जाय तो स्पष्ट हो जाता है कि अन्न को कूटना। खेतों में पक कर तैयार हुए नए अन्न जब किसानों के घर पहुंचते हैं तो उन्हें कूटकर तैयार करके अन्नकूट के दिन नये-नये व्यंजनों को बना करके नवान्न का भक्षण करने की परंपरा रही है। द्वापर युग में आज के ही दिन भगवान श्याम सुंदर कन्हैया के मतानुसार गोवर्धन पूजा प्रारंभ हुई। हमारे अवतारों ने सदैव प्रकृति पूजा एवं प्रकृति का संरक्षण करने के लिए आम जनमानस को प्रेरित किया है। जहां आदिकाल से इन्द्र की पूजा होती आई थी वहीं बालकृष्ण ने गोवर्धन पूजा का प्रस्ताव रखा। भगवान कन्हैया का मानना था कि यदि हम प्रकृति की पूजा करके उनका संरक्षण करेंगे तो जनसाधारण सुख से जीवन व्यतीत कर पाएगा। सनातन धर्म की मान्यता रही है कि नदियों को मां के रूप में एवं गोवर्धन के रूप में पहाड़ों की पूजा की जाय। जब भगवान श्याम सुंदर कन्हैया ने गोवर्धन को धारण किया तब ब्रजवासी गोवर्धन की पूजा करने के लिए छप्पन प्रकार के भोग बनाकर प्रेम से उनको समर्पित किया। तभी से अन्नकूट एवं गोवर्धन पूजा प्रारंभ हुई। गोवर्धन पूजा करने का मुख्य कारण प्रकृति का संरक्षण एवं प्रकृति की पूजा ही थी।
हमारा सनातन सेवाश्रम ट्रस्ट का मानना है कि आज के आधुनिकरण के युग में जहां एक मनुष्य दूसरे से आगे निकलने की होड़ में लगा हुआ है, वहीं जल्द से जल्द विकास कर लेना चाहता है। मनुष्य की विस्तारीकरण की नीति दिन प्रतिदिन प्रकृति का दोहन कर रही है, यही कारण है कि प्रतिदिन पृथ्वी पर प्राकृतिक आपदाएं आती रहती हैं। जिस प्रकार पृथ्वी का दोहन एवं पहाड़ों को तोड़कर नई बस्तियां बनाना मनुष्य ने प्रारंभ कर रखा है उसी प्रकार प्राकृतिक आपदाएं असमय मनुष्य को काल के गाल में पहुंचा रही है। आज पहाड़ों को तोड़ने वाले यह भूल गए हैं कि पहाड़ स्वयं भगवान कृष्ण का स्वरूप अर्थात गोवर्धन है। नदियों का दोहन करने वाले यह भूल गए हैं की नदियों को हमारे परमात्मा ने माँ कहके पुकारा था। दिन प्रतिदिन आज पृथ्वी का दोहन हो रहा है। जिस पृथ्वी को हम माँ कहते हैं उसी की छाती छलनी करने पर तुले हुए हैं, यही कारण है कि आए दिन भूकंप, भूस्खलन आदि देखने को मिल रहे हैं। जिस प्रकार मनुष्य अपने कृषि योग्य भूमि को नष्ट करके उसका शहरीकरण करता जा रहा है वह आने वाले दिनों के लिए शुभ संकेत नहीं है। जब खेत ही नहीं रहेंगे तो नये अन्न कैसे पैदा होंगे और कैसे मनाया जायेगा “अन्नकूट”। भारत आदिकाल से कृषि प्रधान देश रहा है परन्तु आज धीरे धीरे जिस प्रकार खेत विलुप्त होते जा रहे हैं वह दिन दूर नहीं है जब हमारा देश भारत भी अन्य देशों की तरह भूखमरी के मुहाने पर खड़ा होगा। सतयुग में मानव जाति के कल्याण के लिए देवताओं और राक्षसों ने मिलकर की समुद्र मंथन किया था और उसमें से चौदह प्रकार के रत्न निकाले थे। परन्तु आज मनुष्य नित्य समुद्र मंथन कर रहा है जिसके परिणाम स्वरूप आए दिन सुनामी जैसे रत्न मनुष्य को मिल रहे हैं। आज मनुष्य को विचार करने की आवश्यकता है कि हमारे महापुरुषों ने यदि प्रकृति का संरक्षण करने का संदेश दिया था तो उसमें मानव मात्र की भलाई छुपी हुई थी। आज हम अपने महापुरुषों के आदेशों एवं संदेशों को भूल कर के मनमाना व्यवहार कर रहे हैं जिसके कारण हमें अनेक प्रकार की आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है। अभी समय है जाग जाने का यदि हम प्रकृति के प्रति सजग नहीं हुए तो आने वाला दिन बहुत ही भयावह होगा।
आज गोवर्धन पूजा के दिन प्रत्येक व्यक्ति को प्रकृति के प्रति जागरूक होने एवं अन्य लोगों को भी जागरूक करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए तभी ये गोवर्धन पूजा या अन्नकूट मनाने का प्रयोजन सिद्ध होगा।
कार्तिक माह में चल रहे पंच महापर्वो के चौथे दिन अन्नकूट एवं गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया गया
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