संवाददाता अंगद कुमार प्रजापति
आईटीएमएस के माध्यम से प्रसारित की जा रही है डीटीओ की भी अपील
गोरखपुर।अगर दो सप्ताह से अधिक की खांसी हो, बुखार आए या बलगम में खून आने समेत टीबी का कोई भी लक्षण दिखे तो तुरंत नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर जांच कराएं। टीबी का सम्पूर्ण इलाज सरकारी तंत्र में मौजूद है। सभी लोग सहयोग करके ही जनपद को टीबी मुक्त बना सकते हैं। मुख्य विकास अधिकारी संजय कुमार मीना ने जनपदवासियों से यह अपील की है । उन्होंने नौ सितम्बर से शुरू होकर बीस सितम्बर तक चलने वाले सक्रिय क्षय रोग खोजी (एसीएफ) अभियान को सफल बनाने की अपील की। उधर, इंटीग्रेटेड ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम (आईटीएमएस) के माध्यम से जिला क्षय उन्मूलन अधिकारी डॉ गणेश यादव भी अभियान की सफलता में जनसहयोग की अपील कर रहे हैं।
डॉ यादव ने बताया कि जिले में तीन सदस्यों की स्वास्थ्य टीम जनपद की बीस फीसदी आबादी के बीच जाकर टीबी के संभावित रोगियों को ढूंढ रही है। इस टीम में आशा कार्यकर्ता के साथ दो अन्य सदस्य हैं । यह टीम संभावित मरीजों का मौके पर बलगम इकट्ठा कर रही है और बलगम के खाली पेट वाले दूसरे सैम्पल के लिए संभावित मरीजों को डिब्बा भी देती है। बलगम के दो सैम्पल की जांच करके टीबी मरीजों की खोज की जा रही है। जिन मरीजों में बलगम से टीबी की पुष्टि नहीं होती है उनकी एक्स रे और सीबीनॉट जांच करवा कर बीमारी का पता लगाया जाता है। प्रत्येक पुष्ट टीबी मरीज की भी सीबीनॉट जांच कराई जाती है ताकि पता लगाया जा सके कि वह ड्रग सेंसिटिव (डीएस) टीबी मरीज है या फिर ड्रग रेसिस्टेंट(डीआर) टीबी मरीज। डीएस टीबी मरीजों का इलाज छह माह में पूर्ण हो जाता है, जबकि डीआर टीबी मरीजों के इलाज में डेढ़ से दो साल तक का समय लग जाता है। जांच और इलाज की समस्त सुविधा सरकारी अस्पतालों में मौजूद है।
मुख्य विकास अधिकारी ने लोगों से अपील की है कि वह अभियान में जुटी टीम का सहयोग करें। अगर किसी को लक्षण है तो वह खुद आगे आए और जांच कराए। उन्होंने कहा कि हम सभी लोगों की भी जिम्मेदारी है कि लक्षण वाले मरीजों के बारे में आशा कार्यकर्ता और टीम को जरूर बताएं। ऐसा करने से उनका समय से जांच और इलाज होगा। इससे वह मरीज तो ठीक होंगे ही, साथ में इस बीमारी का संक्रमण भी रुक सकेगा।
8684 मरीज हैं उपचाराधीन
जिला क्षय उन्मूलन अधिकारी डॉ यादव ने बताया कि इस समय 8684 टीबी मरीजों का जिले में उपचार चल रहा है। इनमें से 372 डीआर टीबी मरीज हैं। अगर डीएस टीबी का मरीज भी बीच में दवा बंद कर देते हैं या अनियमित इलाज लेते हैं तो वह डीआर टीबी का मरीज बन सकते हैं। ऐसे मरीजों का इलाज जटिल होता है। डीआर टीबी मरीज से संक्रमित होने वाले नये मरीज भी डीआर टीबी के मरीज बन जाते हैं। अगर समय से नये मरीजों को खोज कर उपचार शुरू कर दिया जाए तो दो से तीन हफ्ते में उपचाराधीन मरीजों से संक्रमण की आशंका नहीं रह जाती है।