रतन गुप्ता उप संपादक———–नेपाल के शुक्लफांटा नगर पालिका-11 में बनहरा नदी के किनारे झोपड़ी बनाकर रह रहे भूमिहीन परिवार सुरक्षित स्थान पर जाने की तैयारी कर रहे हैं। कोई झोपड़ी बनाने में व्यस्त है तो कोई फटे तिरपाल और कपड़े झोपड़ियों में डालने में व्यस्त है।जहाँ वे रह रहे हैं, वहाँ बाढ़ के खतरे को देखते हुए भूमिहीन परिवार ईस्ट-वेस्ट हाईवे के किनारे जाने लगे हैं। कलावती दमाई ने बताया कि दो दिन तक लगातार बारिश होने और नदी में पानी का बहाव बढ़ने के बाद उन्हें अपनी जान बचाने के लिए सुरक्षित स्थान पर जाना पड़ा।उन्होंने कहा, “पिछले साल जब हम रात को सोने की तैयारी कर रहे थे, तो कैंप में पानी भर जाने के कारण हम सिर्फ अपने कपड़े लेकर भाग निकले थे।” इस साल लगातार बारिश के कारण नदी में बाढ़ आने की संभावना बढ़ गई है। हमें बाढ़ से पहले बच्चों को ओढ़ने के लिए कपड़े और बिस्तर देकर सुरक्षित स्थान पर ले जाना पड़ा है। कुछ भूमिहीन परिवारों ने दानदाताओं द्वारा उपलब्ध कराए गए तिरपाल से झोपड़ियाँ बनाई हैं, जबकि अन्य ने पुराने फटे प्लास्टिक और कपड़ों से उन्हें ढक दिया है। दल बहादुर बोहरा ने कहा कि जितना पानी बाहर गिरता है, उतना ही अंदर रिसता है, इसलिए उन्हें अपने बच्चों को गोद में लेकर रात बितानी पड़ती है। उन्होंने कहा, “जब बारिश नहीं होती है, तो हम नदी पर बने कंक्रीट के पुल के नीचे सोते हैं।” “जब बारिश होती है, तो हमें मजबूरन टपकती झोपड़ियों में जाना पड़ता है क्योंकि बाढ़ का पानी पुल के नीचे आ जाता है।” प्रकाश साउद ने कहा कि पहले जब नदी में बाढ़ आती थी, तो वे सामुदायिक वन क्षेत्र में ऊंचे स्थानों पर चले जाते थे और पेड़ों के नीचे शरण लेते थे। उन्होंने कहा, ‘वन क्षेत्र में मच्छर काटते थे और हमें परेशान करते थे।’ ‘हम मानसून के दौरान भीगने पर भी अपनी जान बचाते थे। जब हम भोजन और अन्य सामान नहीं ले जा पाते थे तो हमें नुकसान होता था, इसलिए हमने राजमार्ग के किनारे झोपड़ियों में रहना शुरू कर दिया। भूमिहीन परिवार मजदूरी करके अपना जीवन यापन कर रहा है। माघी रावत ने शिकायत की कि मजदूरी के अभाव में उन्हें बरसात के मौसम में भूखे रहना पड़ता है। भूमिहीन परिवार का कहना है कि वे झूला, तिरपाल और मशाल की व्यवस्था करने के लिए कई बार वार्ड कार्यालय और नगर पालिका कार्यालय गए, लेकिन कुछ नहीं हुआ। भूमिहीन परिवार ने कहा, ‘शुरू में जनप्रतिनिधि कहते थे कि वे समस्या का समाधान करेंगे, लेकिन अब वे असभ्य और बातूनी हो गए हैं और हमने पूछना बंद कर दिया है।’ शिविरों में रहने वाले परिवारों ने भूमि विवाद समाधान आयोग के पास भूमि और आवास के लिए आवेदन किया है। हालांकि उन्हें निसा मिल गया है, लेकिन अभी तक समझौता नहीं हुआ है। वनहारा भूमिहीन शिविर में 28 परिवार रहते हैं। भूमिहीन परिवारों ने दानदाता एजेंसियों से अनुरोध किया है कि वे उनकी झोपड़ियों में रखने के लिए तिरपाल, बरसात के मौसम में काम न मिलने पर दो वक्त के भोजन के लिए अनाज तथा रात में चलने में मदद के लिए टॉर्च उपलब्ध कराएं।
रतन गुप्ता उप संपादक